जायज नहीं हराम की कमाई से रोजे की सहरी और इफ्तार करना

देवबंद में मुद्दस रमजान के महीने में हलाल कमाई को जायज जगहों पर खर्च करना भी रोजे का एक अहम हिस्सा है। तंजीम अबना-ए-दारुल उलूम के अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती याद इलाही कासमी का कहना है कि हराम की कमाई से रोजे के लिए सहरी करना और उसी कमाई से इफ्तार करना जायज नहीं। अल्लाह को ऐसे रोजे की जरूरत नहीं है।

मुकद्दस रमजान का महीना कितनी अहमियत वाला है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है रमजान माह में तमाम बुराइयों को त्यागने, दूसरों को तकलीफ न पहुंचाने और हलाल की कमाई का इस्तेमाल करने का हुक्म शरीयत में दिया गया है।

शरीयत के हुक्म पर रोशनी डालते हुए मुफ्ती याद इलाही कासमी ने कहा कि रोजे का मकसद खाने पीने की चीजों को छोड़ना नहीं बल्कि हर गलत काम व गुनाहों की चीजों को त्यागना है।

झूठ न बोलना, दूसरों को तकलीफ पहुंचाने वाली बातों को न करना, हराम कमाई को छोड़कर जायज तरीके से कमाई करना और उस कमाई को जायज जगहों पर खर्च करना रोजे का एक अहम हिस्सा है।

मुफ्ती याद इलाही ने कहा कि अगर कोई शख्स रोजा रखकर हराम माल (पैसे) से सहरी व इफ्तार करता है तो उस पर हुजूर ने बताया कि अल्लाह ताआला को ऐसे रोजे की जरूरत नहीं है।

इसलिए हुजूर ने फरमाया हलाल माल से रोजा रखो और उसी से इफ्तार करो। उन्होंने कहा कि रमजान में मुसलमानों को पांचों वक्त की नमाज की पाबंदी करनी चाहिए और नफली इबादतों में वक्त लगाना चाहिए। इसके अलावा जकात अदा करने के साथ ही ज्यादा से ज्यादा नफली सदका देना भी सवाब का काम है।

Facebooktwitter

Leave a Reply

Your email address will not be published.