जानिए कौन हैं कैराना में बीजेपी को हराने वाली तबस्सुम हसन(MP) |
कैराना लोकसभा सीट से उपचुनाव 2018 में जीत दर्ज करने वाली राष्ट्रीय लोकदल की उम्मीदवार तबस्सुम हसन के लिए न तो राजनीति नई है और न ही कैराना सीट नई है|
राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखने वाली तबस्सुम हसन ने साल 2009 में भी कैराना सीट से बीएसपी उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की थी | और साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उनके बेटे चौधरी नाहिद हसन ने बीजेपी के उम्मीदवार हुकुम सिंह को चुनौती दी थी|
तबस्सुम हसन के परिवार की राजनीतिक विरासत की बात करें तो अब उनकी तीसरी पीढ़ी भी राजनीति में आ चुकी है.
तबस्सुम हसन के ससुर चौधरी अख़्तर हसन सांसद रह चुके हैं, जबकि पति मुनव्वर हसन कैराना से दो बार विधायक, दो बार सांसद, एक बार राज्यसभा और एक बार विधान परिषद के सदस्य भी रहे हैं. चौधरी मुनव्वर हसन एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने चारों सदनों का प्रतिनिधित्व किया.साल 1993 में भी मुनव्वर हसन विधायक बने. 1996 में कैराना लोकसभा सीट से वो सपा के टिकट पर और 2004 में सपा-रालोद गठबंधन के टिकट पर मुज़फ़्फ़रनगर से सांसद चुने गए. चौधरी मुनव्वर हसन राज्यसभा और विधान परिषद के सदस्य भी रहे.2009 में चौधरी मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम हसन बसपा के टिकट पर कैराना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं. इसी चुनाव के साथ राजनीति में प्रवेश कर रहीं तबस्सुम ने छह बार कैराना से विधायक रहे हुकुम सिंह को हराया था |
2014 में लोकसभा सदस्य बनने के बाद जब हुकुम सिंह ने कैराना विधानसभा सीट खाली की तो ये सीट एक बार फिर हसन परिवार के पास आ गई. अबकी बार चौधरी मुनव्वर हसन और तबस्सुम हसन के बेटे चौधरी नाहिद हसन ने सपा के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की.बाद में साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने मृगांका सिंह को हराकर इस सीट पर अपना कब्जा बनाए रखा.
तबस्सुम हसन MP मुस्लिम गुर्जर समुदाय से संबंध रखती हैं. कैराना में हिंदू और मुस्लिम गुर्जर की संख्या क़रीब तीन लाख है और राजनीतिक रूप से ये काफ़ी प्रभावी भूमिका में रहते हैं.
इलाक़े के लोग बताते हैं कि राजनीतिक रूप से हुकुम सिंह का परिवार और तबस्सुम हसन MP का परिवार एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी भले ही हों, लेकिन सामाजिक ताने-बाने में दोनों का संबंध ‘घरेलू’ है.
दरअसल, दोनों ही परिवार मूल रूप से गुर्जर समुदाय से आते हैं. बल्कि दोनों ही गुर्जर की एक ही खाप यानी कलस्यान खाप से संबंध रखते हैं. कैराना, शामली और मुज़फ़्फ़रनगर में जाट और गुर्जर समुदाय के लोग दोनों ही धर्मों यानी हिंदुओं और मुसलमानों में हैं.